अख़्तर रज़ा अज़हरी रिज़वी का सफ़ेद झूठ
18 फ़रवरी 2015 को, गोआ के मडगांव शहर में मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी ने एक मुख़्तसर तक़रीर की। इस तक़रीर को नीचे दिए हुए वेबलिंक पर सुना जा सकता है।
हर वो शख्स जिसको अल्लाह ने अक़्ल और सुनने की ताक़त अता की है , सुन सकता है की मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी ने साफ़ साफ़ दावते इस्लामी पर बहुत से संगीन इलज़ाम और बुहतान लगाये है। जिन में अहम इलज़ाम व बुहतान ये हैं :
1) पहला झूठ : दावते इस्लामी जमाते इस्लामी से निकली हुई
एक शाख है।
2 )दूसरा झूठ :दावते इस्लामी मसलके अहले सुन्नत पर नहीं
है।
3)तीसरा झूठ : दावते इस्लामी वाले देवबंदी के पीछे नमाज़
पढ़ लेते हैं।
जोश में मौलाना अख्तर
रज़ा अजहरी रिज़वी इल्ज़ाम तो बहुत कुछ लगा गए लेकिन शायद वो भूल गए की, उनको हर इल्ज़ाम की दलील भी देनी चाहिए थी। अगर उस वक़्त न दे
पाये तो कम से कम बाद में दे देते। शरीअत का तक़ाज़ा तो यही था। लेकिन जिन लोगों को अपने
फ़िरक़े की फ़िक्र ज़्यादा होती है ,वो लोग अक्सर शरीअत
को नज़र अंदाज़ करते हैं। ये बात साब को मालूम है की इल्ज़ाम लगा देने से कोइ बात सच नहीं हो जाती है। मौलाना
रेहान रज़ा खान (र ह ) ने "बरेली में सफ़ेद
रीछ का तमाशा " नाम से एक इश्तेहार निकला था जिसमें उन्होंने मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी पर संगीन इल्ज़ाम लगाए थे।
अब कोई बताये की इन इल्ज़ामों को सच
क्यों न माना जाए?
क्या पूरा फ़िरक़ा अख्तरिया मिलकर ये बात साबित कर
सकता है की दावते इस्लामी जमाते इस्लामी से
निकली हुई एक शाख है? शरीअत की किस दलील की रोशनी में मौलाना अख्तर
रज़ा रिज़वी ने दावते इस्लामी को मसलके अहले सुन्नत से ही खारिज कर दिया?
और तीसरा इल्ज़ाम तो बेहद बेहूदा है। मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी
ने कहा की "दावते इस्लामी वाले देवबंदी के पीछे
नमाज़ पढ़ लेते हैं" । आखिर इस जुमले में " दावते इस्लामी " से मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी की क्या मुराद है? क्या दावते इस्लामी
का कोई ज़िम्मेदार शख्स ऐसा करता है?
क्या दावते इस्लामी
की तालीमात में ऐसी ऐसी बात लिखी गयी है ?
और अगर ऐसी बात नहीं
है , तो फिर इस इल्ज़ाम का क्या मतलब? चूँकि मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी खुद देखने से क़ासिर हैं, हम ये जानना चाहते हैं की,
उनको ये खबर किस ने
दी? क्या
खबर लाने वाला भरोसे के लायक था? उस शख्स ने ये कैसे पता लगाया की नमाज़ पढ़ने वाला दावते इस्लामी
से जुड़ा हुआ शख्स है? और बिल फ़र्ज़ ( असजद रज़ा गौर करें) अगर कोई
कम इल्म शख्स , जो दावते इस्लामी से जुड़ा है, उसने ऐसा कर भी लिए, तो इसका इल्ज़ाम पूरी तंज़ीम व तहरीक दावते इस्लामी पर कैसे लगाया
जा सकता है?
ये तो ऐसा ही हुआ, जैसे मान लीजिए,
फ़िरक़ा अख्तरिया का कोइ शख्स है, जिसका कलकत्ता शहर में
या साउथ अफ्रीका में रहनी वाली एक "ब्लैक डायमंड" नाम की औरत
से नाजायज़ ताल्लुकात हैं, तो क्या हम ये कह सकते हैं की अख्तरी फ़िरक़े
के सारे लोग नाजायज़ ताल्लुकात में लिपटे हुए हैं? नहीं, ऐसा कहना क़तई दुरुस्त
न होगा। इसी तरह किसी गैर ज़िम्मेदार का कोई
अमल किसी भी तंज़ीम की नुमाइंदिगी नहीं करता
है। पता चला की मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी के ये तीनों इल्ज़ाम सरा-सर झूठे हैं।
मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी
का चौथा झूठ
जब मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी से इन तीनों इल्ज़ामों के सुबूत मांगें गए तो जनाब बिलकुल लाजवाब हो गए! अपने पहले इल्ज़ाम को छिपाने के लिए , मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी ने एक और झूठ बोल दिया! अपनी पहली तक़रीर के ठीक एक हफ्ते बाद , यानि 25 फ़रवरी 2015 को नागपुर शहर में तक़रीर करते हुए मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी कहते हैं " मैंने कभी दावते इस्लामी को जमाते इस्लामी की शाख क़रार नहीं दिया "!
इस झूठी तक़रीर को नीचे दिये गए वेबलिंक पर सुना जा सकता है!
जब मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी से इन तीनों इल्ज़ामों के सुबूत मांगें गए तो जनाब बिलकुल लाजवाब हो गए! अपने पहले इल्ज़ाम को छिपाने के लिए , मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी ने एक और झूठ बोल दिया! अपनी पहली तक़रीर के ठीक एक हफ्ते बाद , यानि 25 फ़रवरी 2015 को नागपुर शहर में तक़रीर करते हुए मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी कहते हैं " मैंने कभी दावते इस्लामी को जमाते इस्लामी की शाख क़रार नहीं दिया "!
इस झूठी तक़रीर को नीचे दिये गए वेबलिंक पर सुना जा सकता है!
Link 1
Link 2
http://picosong.com/VDpE
दुनिया के सामने दोनों तक़रीरों की रिकॉर्डिंग है। आप सुन के फैसला कीजिये। क्या ऐसा झूठा इंसान मुफ़्ती कहलवाने के लायक है? क्या ऐसा शख्स सही फैसला कर सकता है? ये बात सब को मालूम है की मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी अपनी आँख की रोशनी बिल्कुल खो बैठे हैं जिस की वजह से शरीअत की रोशनी में वो क़ाज़ी नहीं रह सकते। इस के बावजूद कुछ लोग, खौफ की वजह से, या फिर मुहब्बत में या फिर चापलूसी में मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी को अभी भी " क़ाज़ी" कहते और मानते हैं।
दुनिया के सामने दोनों तक़रीरों की रिकॉर्डिंग है। आप सुन के फैसला कीजिये। क्या ऐसा झूठा इंसान मुफ़्ती कहलवाने के लायक है? क्या ऐसा शख्स सही फैसला कर सकता है? ये बात सब को मालूम है की मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी अपनी आँख की रोशनी बिल्कुल खो बैठे हैं जिस की वजह से शरीअत की रोशनी में वो क़ाज़ी नहीं रह सकते। इस के बावजूद कुछ लोग, खौफ की वजह से, या फिर मुहब्बत में या फिर चापलूसी में मौलाना अख्तर रज़ा रिज़वी को अभी भी " क़ाज़ी" कहते और मानते हैं।
शायद कुछ लोगों की दिलों से अल्लाह और रसूल की मुहब्बत निकल चुकी है
जिस की वजह से ये लोग , शरीअत की नहीं अपने फ़िरक़े की पैरवी कर रहे
हैं। कहीं यही वजह तो नहीं जिसकी वजह से उम्मत पर परेशानियां आ रही हैं ?
दुआओं का तालिब
फ़क़ीर पीर रिज़वी
6 रमज़ान 1437,
12 जून 2016
outstanding post
ReplyDeleteMaza aa gaya
ReplyDeleteIn buzurgon KI tauhin karte ho internet par sharam nahi ati tum logon ko
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